Monday, November 24, 2008

वैज्ञानिक सोच (ScientificTemper)

हम अपने जीवन में नित्य - प्रति छोटी - बड़ी समस्याओं का समाधान पाने का प्रयास व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर अपने - अपने ढंग से करते हैंप्रयास का ढंग बहुत हद तक, हमारे दृष्टिकोण या चिंतन - प्रणाली अर्थात सोच पर निर्भर करता हैदरअसल, हमारी सोच के प्रस्थान बिन्दु, कुछ मान्यताएं होती हैं, जिन्हें 'स्वयं सिद्ध' मानकर हम आगे बढ़ते हैंये स्वयं सिद्ध या प्रमाणिक सत्य ही हमारी सोच के स्तर एवं स्वरुप को निर्धारित करते हैंसोच व्यक्तिगत स्तर पर मानसिक अनुशासन और सामूहिक स्तर पर संस्कृति के नियामक एवं परिचायक भी है। वैज्ञानिक सोच वैज्ञानिक सत्यों को स्वीकारता है और यही सत्य उसके प्रस्थान बिन्दु होते हैं। अतः वैज्ञानिक सोच का गहरा संभंध विज्ञान एवं वैज्ञानिक सत्य की धारणाओं से है। इन्हे समझना इसलिए भी जरूरी है कि विज्ञान -विरोधी, रूढिवादी, संकीर्णतावादी एवं अंधविश्वास समर्थक शक्तियां इन धारणाओं को तोड़ - मरोड़ कर प्रचारित करती है। इसके लिए कुछ वैज्ञानिकों के वक्तव्यों को संदर्भच्युत ढंग से प्रस्तुत भी करती करती है।


तर्क - बुद्धि एवं प्रयोगों से परीक्षित तथ्यों से प्राप्त सामान्य निष्कर्षों (ज्ञान) का विशेष एवं क्रमबद्ध रूप ही विज्ञान है और इन निष्कर्षों के सुसंगत 'सत्य' ही वैज्ञानिक सत्य है। विज्ञानं में तथ्य - परिक्षण एवं तथ्य - प्राप्ति कि अपनी विधि है। कोई तथ्य या निष्कर्ष वैज्ञानिक रूप से सही है या नहीं, इस बात पर निर्भर करता है कि वह वैज्ञानिक विधि के परिक्षण पर खरा उतरता है या नहीं। वैज्ञानिक विधि वैज्ञानिक सत्यों की असल कसौटी है। ऐसे ही सत्यों या तथ्यों के आधार पर उत्सुकता या जीवन की समस्याओं का समाधान और वस्तुजगत एवं भावजगत में उपयोगिता की खोज एवं सृजन का प्रयास ही वैज्ञानिक सोच है।

वैज्ञानिक तथ्यों की शुरुआत उत्सुकता और जिज्ञासा या प्रकृति में उपयोगिता की खोज से होती है, जो सरल, स्वाभाविक एवं अबाधित प्रश्न बन कर सामने आते हैं। इन प्रश्नों के समाधान की खोज प्रश्न - प्रयोग - परिकल्पना - परिणाम (आंकडे एवं तथ्य ) - सामान्यीकरण (नियम) - सिद्धांत के चरणों से होकर गुजरती है। प्रश्नों के वैज्ञानिक उत्तर या उच्चतर ज्ञान की खोज वर्तमान ज्ञान, यथार्थपरक कल्पना एवं तर्क-बुद्धि पर आधारित होती है। प्राप्त उत्तर या समाधान कार्य - कलाप सम्बन्ध पर आधारित, तर्क - सांगत, वस्तुनिष्ठ एवं बोधगम्य होना चाहिए । विज्ञान किसी भी समय अज्ञात का उत्तर अज्ञात शब्दों में नहीं स्वीकारता है; इसके विपरीत धार्मिक क्षेत्र में जिज्ञासा गुनाह मानी जाती है और अज्ञात का उत्तर अज्ञात शब्दों में देता है। साथ ही विज्ञान कभी यह दावा नहीं करता है कि उसके सभी प्रश्नों के उत्तर तत्काल ही उपलब्ध हैं। लेकिन इसके बावजूद , गैर- वैज्ञानिक उत्तर को नहीं स्वीकारता है। विज्ञान को विश्वास है कि सभी प्रश्नों के उत्तर कभी न कभी प्राप्त हो सकते हैं और वह भी वैज्ञानिक विधि से ही।

वैज्ञानिक तथ्यों (परिणामों) में पुनरावृति हो सकने और परिक्षनियताके गुण पाए जाते हैं, अर्थात कोई भी व्यक्ति उन विधियों को अपनाकर वही परिणाम प्राप्त कर सकता है जो सिद्ध किया जा चुका है । इसके लिए उसे किसी महान व्यक्ति या शक्ति में विश्वास होना बिल्कुल ही आवश्यक नहीं है। वैज्ञानिक तथ्य वैज्ञानिक पत्र -पत्रिकाओं के जरिये पूरी दुनियाँ में जाने जा सकते हैं और कोई भी व्यक्ति परिक्षण के दौरान प्राप्त त्रुटियों को सामने ला सकता है और यहाँ तक कि वैसे परिणामों को जो त्रुटिपूर्ण हो उसे अस्वीकार कर सकता है, यद्यपि वह कितने ही महान ख्याति- प्राप्त वैज्ञानिक की खोज क्यों न हो। कतिपय विश्व -विख्यात वैज्ञानिकों के सिद्धांतों की आलोचना और अस्वीकृति उनके जीवन काल में ही कुछ दशाओं में उनके शिष्यों एवं सहकर्मियों द्वारा हुई है, जिसे उन्होंने भी माना और प्रस्तावित नए परिमार्जित सिद्धांतों को स्वीकारा और प्रशंशा की। इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि विज्ञान की प्रकृति अन्तर - राष्ट्रीय है। इसके ज्ञान सबों के लिए यानि सार्वभौमिक है।
वैज्ञानिक सोच सही उपयोगी ज्ञान कोष में वृद्धि करती है और पुराणपंथी परम्परा द्वारा लायी गई अवरुद्धता की स्थिति को समाप्त भी करती है।

विज्ञान, वैज्ञानिक विधि और वैज्ञानिक सोच के सम्बन्ध में कई मिथ्या धारणाएं प्रचलित है। विज्ञान को तकनिकी और उसके उत्पादों का पर्याय समझकर इनके दुरूपयोग को विज्ञान के माथे मढा जाता है। फ़िर विज्ञान के विकास
को धीमी करने की बात कही जाती है। परन्तु वहीँ दूसरी ओर कहा जाता है कि विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को अल्पांश में भी नहीं जान सका है। ये परस्पर विरोधी तर्क असलियत को सामने ला देते हैं। वैज्ञानिक विधि केवल वैज्ञानिकों की चीज मानी जाती है और इसी तरह, वैज्ञानिक सोच को यांत्रिक और नैतिकता के प्रति असंवेदनशील बनाने वाली सोच कही जाती है; जबकि सत्य यह है कि वैज्ञानिक सोच व्यक्ति एवं समाज को उदार, मानवतावादी और संतुलित बनाती है । वस्तुतः ज्ञान - प्रसार में ही भाव - प्रसार संभव है। वैज्ञानिक सोच पूर्वाग्रह, कट्टरता एवं संकीर्णता की शत्रु है, और इसी कारण दृष्टि को व्यापकता प्रदान करती है।

चुकी वैज्ञानिक सोच पूर्वाग्रहों को दूर करती है, जिसमे बिना जांचे परखे अपने समुदाय के बाहर के लोगों के प्रति बनी पूर्वाग्रह भी शामिल है, अतः यह सभी समुदायों की अन्तर्निहित एकता और उनकी विशिष्टता को भी रेखांकित कर उदारता और धर्मनिरपेक्षता को बढावा देती है। वैज्ञानिक सोच धार्मिक क्रिया-कलापों के लिए विकसित ज्ञान में और धर्मनिरपेक्ष ज्ञान में वृद्धि कर सबों के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं। इस तरह वैज्ञानिक सोच पुरानी, संकीर्णतावादी धारणाओं की विध्वंसक और धर्मनिरपेक्षता की पोषक है।

सारांशतः वैज्ञानिक सोच वैज्ञानिक विधि से प्राप्त सत्यों पर विश्वास क्रमबद्ध, वस्तुपरक एवं समालोचनात्मक ढंग से सोचने, मानसिक अनुशासन और पूर्वाग्रह मुक्त चिंतन एवं विमर्श की संस्कृति का नाम है। इसका विकास उदार, मानवतावादी, प्रगतिशील एवं विकासोन्मुख समाज की आवश्यक शर्तों में एक है। इसके अभाव में जीवन की बहुत सारी समस्याओं में अनावश्यक उलझनें एवं बाधाएं आती है। अतः वैज्ञानिक सोच का प्रोत्साहन एवं प्रचार - प्रसार परिवर्तनकारी शक्तियों का पावन कर्तव्य है। किसी भी सकारात्मक परिवर्तन के लिए संघर्ष का इसे अभिन्न अंग बनाना पडेगा तभी संघर्ष को और भी मजबूत एवं स्वस्थ बनाया जा सकता है।

वैज्ञानिक सामान्यतया बेहिचक अपने ज्ञानों का आदान - प्रदान करते हैं। कुछ राजनैतिक एवं व्यावसायिक कारणों से कभी - कभी अस्थायी रूप में बाधा आती है। ज्ञान - विनिमय और सूचना - विनिमय विज्ञान जगत में हर्ष की बात मानी जाती है। वैज्ञानिक सोच केवल विज्ञान पंडितों की और विज्ञान के लिए नहीं या हर उस व्यक्ति के है जो विज्ञान को समझना चाहता है। विख्यात खगोल वैज्ञानिक डॉ जयंत नार्लीकर ने कहा है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर केवल वैज्ञानिकों का एकाधिकार नहीं है। यह अनपढ़ व्यक्तियों में भी हो सकता है; और एक वैज्ञानिक में भी इसका अभाव हो सकता है। वस्तुगत परिस्थितियों पर आलोचनात्मक ढंग से विचार कर कोई निर्णय लेना ही सत्यस्वरूप में वैज्ञानिक सोच का सार है। कुछ वैज्ञानिकों एवं विज्ञान प्रशिक्षित सुशिक्षितों का चमत्कारिक बाबाओं की शरण में जाना नार्लीकर के कथन को उजागर करता है।

वैज्ञानिक सोच पूर्वाग्रह-मुक्त होती है। यह नए तथ्यों को स्वीकारने और उनके आलोक में पुराने निर्णयों में बदलाव लाने को तैयार एवं तत्पर रहती है। यह सोच मानस को विकृतियों से मुक्त करती है। इस तरह वैज्ञानिक सोच व्यक्तिगत और सामाजिक विकास से जुड़ी है। यह प्रगति और विकास की वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार कर संस्कारगत बाधाओं को दूर करती है, नई संभावनाओं की खोज करती है और विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। वैज्ञानिक सोच अंधविश्वास से, अनुचित रीतियों से तथा अस्वस्थ परम्पराओं से अर्थात मानसिक दासताओं से मुक्ति दिलाती है। इस प्रकार वैज्ञानिक सोच का एक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक (संकीर्ण धार्मिक अर्थ से नहीं) पहलू भी है। अक्सर विचार - विमर्श के दौरान इस पहलू की उपेक्षा की जाती है। शायद इसी कारण कहा गया है "तते ज्ञानः न मुक्ति"। वैज्ञानिक दृष्टिकोण संपन्न व्यक्ति बुद्ध कि सूक्ति "अप्पो दीप भव" को चरितार्थ करती है।

शाशक एवं प्रभुत्वशाली वर्ग अंधविश्वासों एवं अस्वस्थ परम्पराओं का उपयोग अपने हितों की रक्षा के लिए करते हैं। वैज्ञानिक सोच हर सूक्ष्म हथियार (मानसिक दासता) को नाकाम कर जनतांत्रिक, समता-मूलक समाज -निर्माण की परिस्थितियों को तैयार करने में मददगार साबित होती है। वैज्ञानिक सोच मूलतः जनतंत्र -पोषी होती है और जनतांत्रिक मानसिकता के विकास की एक आवश्यक शर्त है।